राष्ट्र-भाव को जगाती ‘
राष्ट्रीय बाल कविताएँ ‘
+ डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
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श्री रमेशराज बहुआयामी रचनाकार हैं, चर्चित तेवरीकार हैं और
तेवरी-आन्दोलन के प्रखर उन्नायक भी | उन्होंने कहानी, लघुकथा, निबन्ध, व्यंग्य,
हाइकु आदि के क्षेत्र में भी अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया है | उनकी चार
सम्पादित कृतियाँ ‘ अभी जुबां कटी नहीं ‘, कबीर जिंदा है ‘, इतिहास घायल है ‘ तथा ‘
एक प्रहार लगातार ‘ प्रकाशित हैं | हाल ही में प्रकाशित ‘ विचार और रस ‘, पुस्तक
में उन्होंने रस-सम्बन्धी सिद्धांतों का विवेचन अपनी नयी उद्भावनाओं के साथ किया
है | सद्यः प्रकाशित शोध कृति ‘ विरोधरस ‘ में परम्परागत रसों से अलग एक नये रस की
खोज की है, जिसका स्थायी भाव ‘ आक्रोश ‘ बताया है | यह रस यथार्थवादी काव्य को रस
की कसौटी पर परखने के सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है |
पुस्तक के शीर्षक को सार्थक करतीं संकलित बाल कविताएँ बच्चों में
देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को उद्दीप्त करती हैं | जिसमें यह भावना हो, वह
भारत-माँ के लिए अपने को मिटा तो सकता है, किन्तु गुलाम कहलवाना पसंद नहीं करेगा-
फांसी के फंदों को चूमें,
लिए तिरंगा कर में घूमें,
भारत-माँ हित मिट जायेंगे
किन्तु ग़ुलाम न कहलायेंगे |
हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘ तिरंगा ’ भारत की पहचान ही नहीं,
उसकी आज़ादी और उसी का परिचायक भी है-
अब परतंत्र नहीं
है भारत
करता है ऐलान
तिरंगा |
तिलक, सुभाष,
लाजपत, बापू
के सपनों की शान
तिरंगा |
महाराणा प्रताप, शिवाजी, कबीर, रसखान, गौतम, गांधी, भगत
सिंह, लालबहादुर शास्त्री आदि वीरों शहीदों और महापुरुषों को याद करते हुए, उनसे
प्रेरणा लेते हुए अधर्म और अन्याय को कड़ी चुनौती दी गयी है –
हर अन्यायी का सर
कुचलें
कर्म-वचन से
लालबहादुर |
हर दुश्मन की कमर
तोड़ दें
‘ अब के हम से मत टकराना ‘ कविता में मित्रता में धोखा देने
वाले चीन को खबरदार किया गया है –
हम तुमसे तिब्बत
ले लेंगे
अपना ‘ शिव-पर्वत
‘ ले लेंगे |
युद्ध-भूमि में
गंवा चुके जो
वापस वह इज्जत ले
लेंगे |
मेहनत से न घबराने, औरों के हक़ का न खाने से और अपने श्रम
के बलबूते देश फल-फूल सकता है –
अपनी मेहनत पर
जीते हैं
औरों का हक़ कब
खाते हम ?
अपने श्रम के
बलबूते ही
खुशहाली घर-घर
लाते हम |
बच्चों में यह भाव होना भी बहुत जरूरी है कि वे किसी से
नफरत न करें, प्यार और सच्चाई को स्वीकारें तथा खिले फूलों की तरह देश के उपवन में
अपनी मोहक मुस्कान बिखेरें-
औरों को पैने
त्रशूल हम
मित्रों को मखमल
की खाटें |
हे प्रभु, इतना वर
दो हमको
फूलों-सी
मुस्कानें बाँटें |
कविताओं में युग-बोध भी है | ‘ यह कश्मीर हमारा है ‘ कविता
में कवि ने कश्मीर और आतंकवादी गतिविधियों की ओर ध्यान खींचा है | यथा-
आतंकी गतिविधियाँ
छोड़ो
चैन-अमन से नाता
जोड़ो,
भोली जनता को मत मारो
काश्मीर में ओ
हत्यारो !
छोटे मीटर में रची गयी इन बाल-कविताओं की भाषा सरल और सुबोध
है | अंततः ये कविताएँ अर्थ समझने, याद करने तथा गाये जाने में भी आसान हैं |
सुंदर भावों के साथ काव्यात्मक अभिव्यक्ति इन कविताओं की अतिरिक्त विशेषता है |
बाल कविताएँ महज मनोरंजक ही नहीं, ज्ञानवर्धक भी होनी चाहिए | वे इतनी सक्षम हो कि
बच्चों की भावनाओं के लिए स्वस्थ विकास का मार्ग प्रशस्त कर सके | श्री रमेशराज के
ये बालगीत इस दृष्टि से पूरी तरह आश्वस्त करते हैं | निसंदेह वे बधाई के पात्र हैं
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डॉ. गोपाल बाबू शर्मा,
46, गोपाल विहार कालोनी, देवरी रोड, आगरा-उ.प्र.-282001
मो.-09259267929