Monday, March 21, 2016

रमेशराज के बालमन पर आधारित बालगीत

रमेशराज के बालमन पर आधारित बालगीत
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|| अब मम्मी सौगन्ध तुम्हारी ||
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हम हाथों में पत्थर लेकर
और न बन्दर के मारेंगे,
समझ गये हम तभी जीत है
लूले-लँगड़ों से हारेंगे।
चाहे कुत्ता भैंस गाय हो
सब हैं जीने के अधिकारी,
दया-भाव ही अपनायेंगे
अब मम्मी सौंगंध तुम्हारी।

छोड़ दिया मीनों के काँटा
डाल-डाल कर उन्हें पकड़ना,
और बड़े-बूढ़ों के सम्मुख
त्याग दिया उपहास-अकड़ना,
जान गये तितली होती है
रंग-विरंगी प्यारी-प्यारी
इसे पकड़ना महापाप है
अब मम्मी सौंगध तुम्हारी।

खेलेंगे-कूदेंगे लेकिन
करें साथ में खूब पढ़ायी,
सोनू मोनू राधा से हम
नहीं करेंगे और लड़ाई
हम बच्चे हैं मन से सच्चे
भोलापन पहचान हमारी
अब मम्मी सौगंध तुम्हारी।
+रमेशराज



|| मुन्ना ||
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कानों में रस घोले मुन्ना
मीठा-मीठा बोले मुन्ना।

जैसे अपना कृष्ण कन्हैया
पाँपाँ पइयाँ डोले मुन्ना।

कहता-मैं पढ़ने जाऊँगा
ले हाथों में झोले मुन्ना।

तख्ती पर खडि़या को रगड़े
कभी किताबें खोले मुन्ना।

माँ कहती-‘आँखों का तारा
माँ को लगते भोले मुन्ना।
+रमेशराज



|| हम बच्चों की बात सुनो ||
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करे न कोई घात सुनो
हम बच्चों की बात सुनो।

बन जायेंगे हम दीपक
जब आयेगी रात सुनो।

हम हिन्दू ना मुस्लिम हैं
हम हैं मानवजात सुनो।

नफरत या दुर्भावों की
हमें न दो सौगात सुनो।

सचहित विष को पी लेंगे
हम बच्चे सुकरात सुनो।
+रमेशराज



|| हम बच्चे ||
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हम बच्चे हर दम मुस्काते
नफरत के हम गीत न गाते।

मक्कारी से बहुत दूर हैं
हम बच्चों के रिश्ते-नाते।

दिन-भर सिर्फ प्यार की नावें
मन की सरिता में तैराते।

दिखता जहाँ कहीं अँधियारा
दीप सरीखे हम जल जाते।

बड़े प्रदूषण लाते होंगे
हम बच्चे वादी महँकाते।
+रमेशराज



|| अब कर तू विज्ञान की बातें ||
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परी लोक की कथा सुना मत
ओरी दादी, ओरी नानी,
झूठे सभी भूत के किस्से
झूठी है हर प्रेत-कहानी।|

इस धरती की चर्चा कर तू
बतला नये ज्ञान की बातें
कैसे ये दिन निकला करता
कैसे फिर आ जातीं रातें?
क्यों होता यह वर्षा-ऋतु में
सूखा कहीं-कही पै पानी।|

कैसे काम करे कम्प्यूटर
कैसे चित्र दिखे टीवी पर
कैसे रीडिंग देता मीटर
कैसे बादल घिरते भू पर ?
अब कर तू विज्ञान की बातें
छोड़ पुराने राजा-रानी
ओरी दादी, ओरी नानी।|
+रमेशराज



|| हम बच्चे हममें पावनता ||
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मुस्काते रहते हम हरदम
कुछ गाते रहते हम हरदम
भावों में अपने कोमलता
खिले कमल-सा मन अपना है ।

मीठी-मीठी बातें प्यारी
मन मोहें मुस्कानें प्यारी
हम बच्चे हममें पावनता
गंगाजल-सा मन अपना है ।

जो फुर-फुर उड़ता रहता है
बल खाता, मुड़ता रहता है
जिसमें है खग-सी चंचलता
उस बादल-सा मन अपना है ।

सबका चित्त मोह लेते हैं
स्पर्शों का सुख देते हैं 
भरी हुई हम में उज्जवलता
मखमल जैसा मन अपना है ।
+रमेशराज



।। सही धर्म का मतलब जानो ।।
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धर्म एक कविता होता है
फूलों-भरी कथा होता है
बच्चो तुमको इसे बचाना
केवल सच्चा धर्म निभाना।

यदि कविता की हत्या होगी
किसी ऋचा की हत्या होगी
बच्चो ऐसा काम न करना
कविता में मधु जीवन भरना।

सही धर्म का मतलब जानो
जनसेवा को सबकुछ मानो
यदि मानव-उपकार करोगे
जग में नूतन रंग भरोगे।

यदि तुमने यह मर्म न जाना
गीता के उपदेश जलेंगे
कुरआनों की हर आयत में
ढेरों आँसू मित्र मिलेंगे |

इसीलिए बच्चो तुम जागो
घृणा-भरे चिन्तन से भागो
नफरत में मानव रोता है
धर्म एक कविता होता है।
-रमेशराज



।। मन करता है।।
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पर्वत-पर्वत बर्फ जमी हो
जिस पर फिसल रहे हों,
फूलों की घाटी हो कोई
उसमें टहल रहे हों,
ऐसे कुछ सपनों में  खोएं,
मन करता है।

मन के बीच नदी हो कोई
कलकल, कलकल बहती,
अपनी मृदुभाषा में हमसे,
ढेरों बातें कहती,
हमको उसके शब्द भिगोएं,
मन करता है।

टहनी-टहनी फूल खिले हों
पात-पात मुस्काएं,
फुनगी-फुनगी चिहुंक-चिंहुककर
चिडि़या गीत सुनाएं,
हम वसंत के सपने बोएं,
मन करता है।
+रमेशराज



|| बबलू जी ||
........................
शोच आदि से फारिग होकर,
मार पालथी, हाथ जोड़कर,
मम्मी के संग गीता पढ़ते बबलू जी।

जब आता गुब्बारे वाला,
या लड्डू-पेड़ा ले लाला,
पैसों को तब बड़े अकड़ते बबलू जी।

आम और जामुन खाने को,
मीठे-मीठे फल पाने को,
पेड़ों पर चुपके से चढ़ते बबलू जी।

यदि कोई गलती हो जाये,
दादी या मम्मी चिल्लाये,
बचने को तब किस्से गड़ते बबलू जी।

बड़े अजब से चित्र बनाते,
देख उन्हें फिर  नहीं अघाते
कुछ को तो शीशे में मढ़ते बबलू जी।

यदि कोई ललकारे इनको,
बिना दोष ही मारे इनको
गुस्से में तब बड़े बिगड़ते बबलू जी।।
+रमेशराज


।। मुन्नूजी ।।
दो-दो गुल्लक
भरकर मुँह तक
पैसे रखते
मुन्नूजी।

नाक सिकोंडें
मुँह को मोड़ें
जब-जब चिढ़ते
अपने मुन्नूजी।

नर्म पकौड़ी
गर्म कचौड़ी
जी-भर चखते
मुन्नूजी।

झट मुस्कायें
झट रो जायें  
नाटक रचते
मुन्नूजी।

फुदक-फुदककर
मेंढ़क बनकर
सीढ़ी चढ़ते
मुन्नूजी।
-रमेशराज


।। पप्पू भइया ।।
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थोड़ा-थोड़ा तुतलाते हैं
बात-बात पर हंस जाते हैं
खुश होते जो प्यार करो पप्पू भइया।

झट-से उन्हें फोड़ देते हैं
उसके बाद नया लेते हैं
गुब्बारे जो अगर भरो पप्पू भइया।

बनकर हउआ डरपाते हैं
शेर सरोखे बन जाते हैं
बोलें-‘मुझसे आज डरो’ पप्पू भइया।

फौरन सीढ़ी तेज उतरते
लम्बे-लम्बे सरपट भरते
कहो उन्हें-‘धीरे  उतरो पप्पू भइया’।
-रमेशराज


|| बाल-पहेलियां ||
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1.
अंगारों से खेलता रोज सवेरे-शाम
हुक्का भरने का करूँ दादाजी का काम
सेंकता रोज चपाती, मैं दादा का नाती।
2.
सब्जी चावल रायता, मुझसे परसो दाल
मेरे सदगुण देखकर होते सभी निहाल
दावतो में मैं जाता, सभी को खीर खिलता।
3.
पूड़ी कुल्चे रोटिया बना रहा अविराम
‘मौसी’ ले लेती मगर एक और भी काम
दिखा मेरी बॉडी को, डराती मौसा जी को।

4.
मेरे सीने में भरी देखो ऐसी आग
तनिक गये गर चूक तो जले पराँठा-साग
तवा मेरी शोभा है, लँगोटा यार रहा है।

5.
पल-पल जलकर मैं हुई अंगारों  से राख
दे देती कुछ रोशनी मैं अँधियारे पाख
भले मैं खुद जल जाती, भोजन सदा पकाती।

आलू दूध उबालता और पकाता दाल
आग जलाती जब मुझे आ जाता भूचाल
गधे  की तरह रेंकता, तेज मैं भाप फैंकता।
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1. चिमटा 2. चमचा 3. बेलन 4. चूल्हा 5. लकड़ी 6. कुकर
-रमेशराज


।। नन्हें पाँव।।
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बबलू जी जब सो जाते
सपनों में तब हो आते
दूर-दूर अनदेखे गाँव
नन्हें पाँव।

बिन चप्पल जब चलते हैं
गरम रेत पर जलते हैं
कदम-कदम पर चाहें छाँव
नन्हें पाँव।

माँ को बेहद भाते हैं
बबलू जी जब आते हैं
करते कागा जैसी काँव
नन्हें पाँव।
-रमेशराज


।। निंदिया ।।
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रातों को जब आते सपने
परीलोक ले जाते सपने।

नदिया पर्वत झरने झीलें
स्वर्गलोक दिखलाते सपने।

कबूतरों की भाँति बनें हम
नभ के बीच उड़ाते सपने।

बच्चे बनते मोर सरीखे
उनको बतख बनाते सपने।

लड्डू पेड़ा, काजू बर्फी
सबको खूब खिलाते सपने।
-रमेशराज


।। मुन्नू राजा बड़े सयाने।।
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मीठी-मीठी बातें करते
दौड़ लगाते सरपट भरते
तुतलाते ये गाते गाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

नकली दाढ़ी-मूँछ लगाते
बूढ़े दादाजी बन जाते |
चलते घर में छाता ताने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

शरारतें इतनी करते हैं
आंखों में पानी भरते हैं |
डाँटो, लगते आँख दिखाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।

पापा के ये राजदुलारे
दादी की आँखों के तारे
इनके करतब सभी सुहाने
मुन्नू राजा बड़े सयाने।
-रमेशराज


।। गुड़िया।।
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बच्चों को बहलाती गुड़िया
बच्चों के मन भाती गुड़िया।

बच्चे भरते जब भी चाभी
ताली खूब बजाती गुड़िया।

बच्चे नाचें ताता थइया
उनको खूब हँसाती गुड़िया।

बच्चे समझें इसकी भाषा
बच्चों से बतियाती गुड़िया।
-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630      





रमेशराज के पशु-पक्षियों से सम्बधित बाल-गीत





रमेशराज के पशु-पक्षियों से सम्बधित बाल-गीत
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|| बन्दर मामा ||
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बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये
इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।

ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती हैरानी
बन्दर बोला- मैं हूँ राजा
बन्दरिया है रानी

भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ
तुम्हें न बाबूरख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज



|| ‘ मेंढ़की ’ ||
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भरे कुलाचें, मारे डुबकी
हो आती पाताल मेंढकी।

हरदम टर्र-टर्र करती है
खूब बजाती गाल मेंढ़की।

फुदक-फुदककर, मटक-मटककर
चले गजब की चाल मेंढ़की।

सावन में जब ताल भरें तो
होती बड़ी निहाल मेंढ़की।

डरकर दूर भाग जाती है
देख बड़ा घडि़याल मेंढकी |
+रमेशराज



|| चिडि़या रानी ||
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हुआ सवेरा, छोड़ घौंसला
आए बच्चे नदिया के तट
फूल खिले हैं सुन्दर-सुन्दर
बिखरे दाने पनघट-पनघट
अब बच्चों को दाना चुगना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||

नदी गा रही कल-कल
बदल रहा है मौसम प्रतिपल
गर्म हवा कर दी सूरज ने
अँकुलाहट भर दी सूरज ने,
जल के भीतर डुबकी लेकर
नहा रही है चिडि़या रानी ||

कैसे पंखों को फैलाना
कैसे ऊपर को उठ जाना
कैसे पूंछ हवा को काटे
कैसे उड़ना ले फर्राटे
पंजों पर बल देना कैसे
आगे को चल देना कैसे
बच्चों को अपने सँग उड़ना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||
+रमेशराज



|| कोयल ||
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मीठे गीत सुनाती कोयल
बच्चों के मन भाती कोयल।

बौरायें जब आम बाग में
जाने किसे बुलाती कोयल।

मखमल जैसी इसकी काया
फूलों-सी मुस्काती कोयल।

इसको अगर पकड़ना चाहो
फुर से झट उड़ जाती कोयल।
+रमेशराज


।। लोमड़ी ।।
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करे न कुछ भी काम लोमड़ी
बस करती आराम लोमड़ी।

सुन मुंह में ले आती पानी
अंगूरों का नाम लोमड़ी।

भूख लगे तो खा लेती है-
केला, गन्ना, आम लोमड़ी।

बड़े चाव से कुतरा करती-
मूंगफली, बादाम लोमड़ी।

मीठे-मीठे फल खाने का-
देती नहीं छदाम लोमड़ी।

धमकाती है खरगोशें को-
रोज सुबह औ’ शाम लोमड़ी।

जंगल के राजा को लेकिन-
करती रोज सलाम लोमड़ी।
-रमेशराज


।। अपने बूढ़े बंदर काका ।।
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उछलकूद नहीं करते अब,
नहीं कुलाचें भरते अब,
नही किसी को घुड़काते,
सख्त चनों से घबराते,
बस छत पर  ही बैठे रहते,
सुबह-शाम अन्दर काका,
अपने बूढ़े बन्दर काका।

जबसे दाँत नुकीले टूटे,
बादामों से नाते छूटे,
केलों पर ही जीते हैं,
या फिर रस ही पीते हैं,
अब तो दूर फेंक देते हैं,
आम, सेब, चुकन्दर काका,
अपने बूढ़े बन्दर काका।
-रमेशराज


।। गधा ।।
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ढेंचू-ढेंचू ढें-ढें ढेंचू
छोड़े कैसी तान गधा ।

केवल अष्ठम स्वर में खोले
जाने क्या मृदगान गधा ।

अपने मालिक का करता है
हरदम ही सम्मान गधा ।

बोझा ढोने में समझे है
देखो अपनी शान गधा ।

चाहे किना भी चल लेता
लाता नहीं थकान गधा ।

बड़े प्रेम से खाया करता
हरी घास औ’ धान गधा ।

रातों  को बाड़े में सोता
सुख की चादर तान गधा ।

धोबी राजा के घर जैसे
है सोने को खान गधा ।
-रमेशराज


।। कबूतर।।
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लम्बी भरे उड़ान कबूतर,
यूं तो नन्हीं जान कबूतर।

उड़ने में काटा करता है,
चीलों के भी कान कबूतर।

दाना चुगता, छेड़ा करता,
‘गुटर गूं’ की तान कबूतर।

कलाबाजियों में ये देता,
सबको झट ऐलान कबूतर।

बिल्ली मौसी का रखता है,
होकर चौकस ध्यान  कबूतर।

पोखर, झील, नदी, नालों में,
कर आता स्नान कबूतर।

चाहे जितना भी उड़ लेता,
लाता नहीं थकान कबूतर।

उड़ने में कब देखा करता,
आंधी  या तूफान कबूतर।

चप्पा-चप्पा आसमान का,
आता झट से छान कबूतर।
-रमेशराज


।। बिल्ली।।
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लम्बी मूंछों वाली बिल्ली
कुछ भूरी कुछ काली बिल्ली,

जब भी चुपके-चुपके आती
देख उसे चुहिया थर्राती,

कहीं छुपाके रख दो भाई
चट कर जाती दूध-मलाई,

दूर-दूर तक यारो झांकें
अंधियारे  में इसकी आंखें।

लोटा बेलन तवा गिराती
अम्मा जी को तनिक न भाती,

लम्बी मूंछों वाली बिल्ली
कुछ भूरी कुछ काली बिल्ली।
-रमेशराज



।। हाथी राजा।।
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सूंड हिलाते हाथी राजा
चलते जाते हाथी राजा।

बड़े चाव से खेत-खेत के
गन्ने खाते हाथी राजा।

केले सेब पपीते आलू
चट कर जाते हाथी राजा।

अपनी पीठ लाद बच्चो को
सैर कराते हाथी राजा।

घुसकर ताल नदी पोखर में
मस्त नहाते हाथी राजा।

बड़े बहादुर, पर चींटी से
झट डर जाते हाथी राजा।
-रमेशराज



।। मैना।।
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ओरी प्यारी-प्यारी मैना
सारे जग से न्यारी मैना
तोता राम दूर क्यों बैठे
हमको तनिक बता री मैना।

चुप बैठै हैं मम्मी-दादी
घर में छायी है खामोशी
मम्मी दादी थोड़ा हंस दें
ऐसा गीत सुना री मैंना।

डाली-डाली कोयल कूके
फैला पंख मोरनी नाचे
फुदक-फुदक कर, मटक-मटक कर
तू भी नाच दिखारी मैना।
-रमेशराज


।। खरगोश ।।
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मखमल-सा कोमल खरगोश
नटखट अति चंचल खरगोश।

जैसे एक रुई का टुकड़ा
ज्यों सपफेद बादल खरगोश।

भरे कबड्डी, मारे ठेका
खूब दिखता बल खरगोश।

बड़े मुलायम बालों वाला
फुर्तीला मांसल खरगोश।

नदी किनारे रोज बैठकर
पीता मीठा जल खरगोश।

दूर-दूर तक घूमा करता
जंगल से जंगल खरगोश।
-रमेशराज


।। मेंढ़क ।।
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फुदक-फुदक कर चलता मेंढ़क
जल में खूब उछलता मेंढ़क।

तैराकी में बड़े गजब की
हासिल किये कुशलता मेंढ़क।

हरे लाल पीले मटमैले
कितने रंग बदलता मेंढ़क।

आते ही वर्षा का मौसम
बाहर तुरत निकलता मेंढक।

इसको अगर पकड़ना चाहो
कर से तुरत फिसलता मेंढ़क।
-रमेशराज


।। चिड़िया।।
चींची-चींची गाती चिड़िया।
मीठे गीत सुनाती चिड़िया।

टहनी-टहनी डाल-डाल पर
फुदक-फुदक कर जाती चिड़िया।

घास-फूंस का तिनका-तिनका
बीन-बीन कर लाती चिड़िया।

देती छोटे-छोटे अण्डे
जब घोंसला बनाती चिड़िया।

अपने सब नन्हें बच्चो को
दाना रोज चुगाती चिड़िया।

घने हरे पेड़ों के भीतर
शाम हुए छुप जाती चिड़िया।

उड़ जाती झट आसमान में
अपने पंख पफुलाती चिड़िया।

जाकर नदिया नाले पनघट
जल के बीच नहाती चिड़िया।

इन्द्रधनुष से रंगों वाली
बच्चों के मन भाती चिड़िया।
-रमेशराज


।। कोयल ।।
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मीठे गीत सुनाती कोयल
पंचम स्वर में गाती कोयल।

केवल मीठी बातें करना
हम सबको समझाती कोयल।

काले-काले पंखों वाली
सबके मन को भाती कोयल।

मौसम जब आता वसंत का
मन में अति हरषाती कोयल।
-रमेशराज


।। चूहा ।।
कुतर-कुतर सब खाता चूहा
खाते नहीं अघाता चूहा।

बिल्ली रानी जब आती तो
देख उसे भाग जाता चूहा।

सोता सदा भूमि के अन्दर
तहखानों का ज्ञाता चूहा।

बड़े मजे से बैठा बिल में
आँखों को चमकाता चूहा।
-रमेशराज



।। पिंजरे में मत डालो इनको ।।
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सबके स्वागत में झुक जाते
अति खुश होते पूँछ हिलाते
करते सबको रोज प्रणाम
तोता जी।

केला-गन्ना खा  लेते हैं
औ’ बादाम नुका लेते हैं
बोलें लाओ-लाओ आम
तोता जी।

इनकी चोंच बड़ी मतवाली
पैनी-पैनी बहुत निराली
करते सभी चोंच से काम
तोता जी।
हरी पत्तियों में छुप जाते
तो बिल्कुल भी नजर न आते
डालों पर करते आराम
तोता जी।

पिंजरे में मत डालो इनको
बाहर अरे निकालो इनको
उड़ना चाह रहे  अविराम
तोता जी।
-रमेशराज


।। बंदर ।।
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घुड़की खूब दिखाता बंदर
सब पर रौव जमाता बंदर।

बिजली के खम्बों के ऊपर
पकड़ तार चढ़ जाता बंदर।

मूँगफली को फोड़-फोड़कर
बड़े मजे से खाता बंदर।

छत के ऊपर अगर सुखाओ
ले कपड़े भग जाता बंदर।

झूले डाल-डाल पर झूला
इतराता-इठलाता बंदर।

शैतानी से नटखटपन से
बिल्कुल बाज न आता बंदर।
-रमेशराज



।। कोयल ।।
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मीठी बोली बोले कोयल
कानों में रस घोले कोयल।

मिसरी जैसे शब्द-शब्द को
कान-कान में रोले कोयल।

बुनती है सपने वसंत के
अमराई को तोले कोयल।

हंसती बैठ डाल के ऊपर
भाव लिये अति भोले कोयल।

पाँव फूल-से डाल-डाल पर
रखती हौले-हौले कोयल।

पंख फुलाकर गीत सुनाती
खूब कूकती डोले कोयल।
-रमेशराज



।। बैल ।।
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बँधे  हुए घुँघरू पैरों में
कदम ताल पर चलते बैल।

भरें कुलाँचें हरी घास पर
नाचें और उछलते बैल।

रख जूआ अपने काँधों  पर
ले हर रोज निकलते बैल।

नित पथरीली भी जमीन का
पल में रूप बदलते बैल।

खेत जोतते करते मेहनत
कड़ी धूप  में जलते बैल।

खेतों को फसलों से भरते
बंजर-रूप बदलते बैल।
-रमेशराज



।। करते नित्य सिंचाई बैल ।।
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भोले-भोले सीधे-सादे
मन में लिया सचाई बैल।

हल से करते हैं खेतों की
आकर रोज जुताई बैल ।

पाटे से कर देते समतल
गड्ढे खंदक खाई बैल।

हिल-मिलकर रहते आपस में
जैसे भाई-भाई बैल।

रहट, पैर, ढेंकुली चलाकर
करते नित्य सिंचाई बैल।

ईख पेर कर झट कोल्हू से
देते हमें मिठाई बैल।

गाड़ी में जुतकर किसान की
करते माल-ढुलाई बैल।
+रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630