Monday, June 13, 2016

राष्ट्र-भाव को जगाती ‘ राष्ट्रीय बाल कविताएँ ‘ + डॉ. गोपाल बाबू शर्मा




राष्ट्र-भाव को जगाती ‘ राष्ट्रीय बाल कविताएँ ‘

+ डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
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   श्री रमेशराज बहुआयामी रचनाकार हैं, चर्चित तेवरीकार हैं और तेवरी-आन्दोलन के प्रखर उन्नायक भी | उन्होंने कहानी, लघुकथा, निबन्ध, व्यंग्य, हाइकु आदि के क्षेत्र में भी अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दिया है | उनकी चार सम्पादित कृतियाँ ‘ अभी जुबां कटी नहीं ‘, कबीर जिंदा है ‘, इतिहास घायल है ‘ तथा ‘ एक प्रहार लगातार ‘ प्रकाशित हैं | हाल ही में प्रकाशित ‘ विचार और रस ‘, पुस्तक में उन्होंने रस-सम्बन्धी सिद्धांतों का विवेचन अपनी नयी उद्भावनाओं के साथ किया है | सद्यः प्रकाशित शोध कृति ‘ विरोधरस ‘ में परम्परागत रसों से अलग एक नये रस की खोज की है, जिसका स्थायी भाव ‘ आक्रोश ‘ बताया है | यह रस यथार्थवादी काव्य को रस की कसौटी पर परखने के सन्दर्भ में अति महत्वपूर्ण है |
   पुस्तक के शीर्षक को सार्थक करतीं संकलित बाल कविताएँ बच्चों में देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को उद्दीप्त करती हैं | जिसमें यह भावना हो, वह भारत-माँ के लिए अपने को मिटा तो सकता है, किन्तु गुलाम कहलवाना पसंद नहीं करेगा-
फांसी के फंदों को चूमें,
लिए तिरंगा कर में घूमें,
भारत-माँ हित मिट जायेंगे
किन्तु ग़ुलाम न कहलायेंगे |
हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘ तिरंगा ’ भारत की पहचान ही नहीं, उसकी आज़ादी और उसी का परिचायक भी है-
   अब परतंत्र नहीं है भारत
   करता है ऐलान तिरंगा |
   तिलक, सुभाष, लाजपत, बापू
   के सपनों की शान तिरंगा |
महाराणा प्रताप, शिवाजी, कबीर, रसखान, गौतम, गांधी, भगत सिंह, लालबहादुर शास्त्री आदि वीरों शहीदों और महापुरुषों को याद करते हुए, उनसे प्रेरणा लेते हुए अधर्म और अन्याय को कड़ी चुनौती दी गयी है –
   हर अन्यायी का सर कुचलें
   कर्म-वचन से लालबहादुर |
   हर दुश्मन की कमर तोड़ दें
‘ अब के हम से मत टकराना ‘ कविता में मित्रता में धोखा देने वाले चीन को खबरदार किया गया है –
   हम तुमसे तिब्बत ले लेंगे
   अपना ‘ शिव-पर्वत ‘ ले लेंगे |
   युद्ध-भूमि में गंवा चुके जो
   वापस वह इज्जत ले लेंगे |
मेहनत से न घबराने, औरों के हक़ का न खाने से और अपने श्रम के बलबूते देश फल-फूल सकता है –
   अपनी मेहनत पर जीते हैं
   औरों का हक़ कब खाते हम ?
   अपने श्रम के बलबूते ही
   खुशहाली घर-घर लाते हम |
बच्चों में यह भाव होना भी बहुत जरूरी है कि वे किसी से नफरत न करें, प्यार और सच्चाई को स्वीकारें तथा खिले फूलों की तरह देश के उपवन में अपनी मोहक मुस्कान बिखेरें-
   औरों को पैने त्रशूल हम
   मित्रों को मखमल की खाटें |
   हे प्रभु, इतना वर दो हमको
   फूलों-सी मुस्कानें बाँटें |
कविताओं में युग-बोध भी है | ‘ यह कश्मीर हमारा है ‘ कविता में कवि ने कश्मीर और आतंकवादी गतिविधियों की ओर ध्यान खींचा है | यथा-
   आतंकी गतिविधियाँ छोड़ो
   चैन-अमन से नाता जोड़ो,
   भोली जनता को मत मारो
   काश्मीर में ओ हत्यारो !
छोटे मीटर में रची गयी इन बाल-कविताओं की भाषा सरल और सुबोध है | अंततः ये कविताएँ अर्थ समझने, याद करने तथा गाये जाने में भी आसान हैं | सुंदर भावों के साथ काव्यात्मक अभिव्यक्ति इन कविताओं की अतिरिक्त विशेषता है | बाल कविताएँ महज मनोरंजक ही नहीं, ज्ञानवर्धक भी होनी चाहिए | वे इतनी सक्षम हो कि बच्चों की भावनाओं के लिए स्वस्थ विकास का मार्ग प्रशस्त कर सके | श्री रमेशराज के ये बालगीत इस दृष्टि से पूरी तरह आश्वस्त करते हैं | निसंदेह वे बधाई के पात्र हैं |
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डॉ. गोपाल बाबू शर्मा, 46, गोपाल विहार कालोनी, देवरी रोड, आगरा-उ.प्र.-282001  

मो.-09259267929  

Sunday, June 12, 2016

''नव कुंडलिया 'राज' छंद'' में रमेशराज के 6 बालगीत




''नव कुंडलिया 'राजछंद'' में रमेशराज के 6 बालगीत

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|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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" जल-संकट हो, अगर कटे वन
अगर कटे वन, सूखे सावन
 सूखे सावन, सूखे भादों
सूखे भादों, खिले न सरसों
खिले न सरसों, रेत प्रकट हो
रेत प्रकट हो, जल-संकट हो | "      
              (रमेशराज )


|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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मत मरुथल को और बढ़ा तू
और बढ़ा तू मत गर्मी-लू,
मत गर्मी-लू, पेड़ बचा रे
पेड़ बचा रे, वृक्ष लगा रे,
वृक्ष लगा रे, तब ही जन्नत
तब ही जन्नत, तरु काटे मत  |      
              (रमेशराज )


|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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" मत मरुथल को और बढ़ा तू
और बढ़ा तू मत गर्मी-लू,
मत गर्मी-लू, पेड़ बचा रे
पेड़ बचा रे, वृक्ष लगा रे,
वृक्ष लगा रे, तब ही जन्नत
तब ही जन्नत, तरु काटे मत  | "      
              (रमेशराज )


|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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नटखट बन्दर  छत के ऊपर
छत के ऊपर , झांके  घर - घर
झांके  घर - घर , कहाँ माल है ?
कहाँ माल है ? कहाँ दाल है ?
कहाँ दाल है ? मैं खाऊँ झट
मैं खाऊँ झट , सोचे नटखट | "      
              (रमेशराज )


|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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" बबलू जी जब कुछ तुतलाकर
 तुतलाकर बल खा इठलाकर ,
इठलाकर थोड़ा मुस्काते
मुस्काते या बात बनाते ,
बात बनाते तो हंसते सब
सब संग होते बबलू जी जब |                          
(रमेशराज )


|| 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' ||
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फूल - फूल पर तितली रानी
तितली रानी लगे सुहानी ,
लगे सुहानी इसे न पकड़ो
इसे न पकड़ो, ये जाती रो ,
ये जाती रो खेत - कूल पर
खेत - कूल पर फूल - फूल पर |                       

(रमेशराज )

Sunday, April 3, 2016

रमेशराज के हास्य बालगीत

    


                 


       रमेशराज के हास्य बालगीत
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|| रामलीला ||
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बंदर काका हनुमान थे
बने रामलीला में

दिखा रहे थे वहां दहन के
खुब काम लीला में।

जलती हुई पूंछ से उनकी
छूटा एक पटाखा

चारों खाने चित्त गिर गये
फौरन बंदर काका।

मारे डर के थर-थर कांपे
फिर तो काका बंदर,

साथी-संगी उन्हें ले गए
तुरत मंच से अंदर।
+रमेशराज


|| बन्दर मामा ||
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बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये

इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।

ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती हैरानी

बन्दर बोला- मैं हूँ राजा
बन्दरिया है रानी

भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ

तुम्हें न बाबूरख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज



|| बंदर की दाढ़ी ||
.........................
चुपके-चुपके देख रहा था
छत से बूढ़ा बंदर

दाढ़ी बना रहे हैं काका
बैठे घर के अंदर

उसका जी ललचाया, मैं भी
दाढ़ी आज बनाऊँ

काका की ही तरह गाल पर
साबुन खूब लगाऊँ |

मार झपट्टा काका जी से
छीन ले गया रेजर

लगा बनाने दाढ़ी बंदर
झट से छत के ऊपर।

गाल कटा बेचारे का तो
चीखा औ’ चिल्लाया

दौड़ो-दौड़ो मुझे बचाओ
उसने शोर मचाया।
+रमेशराज


।। मोटूराम।।
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सीधे-सादे भोले-भाले
तनिक न नटखट मोटूराम।

मिलजुल के रहते हैं सबसे
करें न खटपट मोटूराम।

धीरे-धीरे  चलें राह में
भरें न सरपट मोटूराम।

बर्फी,लड्डू, और जलेबी
खाते झटपट मोटूराम।

ढेरों पानी पी जाते फिर
गट-गट, गट-गट मोटूराम।

बड़ी तोंद से मुश्किल आती
लेते करवट मोटूराम।
-रमेशराज




|| मिली नहीं ससुराल ||
......................................
पत्नी को लेने चले मेंढ़कजी ससुराल
सर से अपने बांधकर एक हरा रूमाल

एक हरा रूमाल, हाथ में लेकर डंडा
दिखने में लगते जैसा मथुरा के पंड़ा,

मथुरा से लेकर टिकिट बम्बई का तत्काल,
बैठ फन्टियर मेल में पहुंच गये भोपाल,

पहुंच गए भोपाल सोचें कहां आ गए?
मिली नहीं ससुराल बिचारे चक्कर खा गए।
+रमेशराज



|| तोंद ||
................................
किसी-किसी की छोटी तोंद,
और किसी की मोटी तोंद।

किसी-किसी की तोंद निराली,
खाओ जितना, उतनी खाली।

लाला जब रसगुल्ले खाते,
भरी तोंद पर हाथ फिराते।

चौबे जी की ऐसी तोंद,
वे हंसते तो हंसती तोंद।

तोंद दिखाये बड़े कमाल,
चट कर जाती सारा माल।

काका जब खर्राटे भरते,
तोंद को ऊपर-नीचे करते।

तोंद बढ़े तो मुश्किल चलना,
पहन के कपड़े, उन्हें बदलना।

रिक्शे वाला नहीं बिठाये,
देख तोंद को झट डर जाये।

बड़ी तोंद की महिमा न्यारी
तीन सीट पर एक सवारी।
+रमेशराज  



।। जोकर।।
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सबको खूब हंसाता जोकर
सूरत अजब बनाता जोकर।

ठुमक-ठुमक औ’ नाच-नाच कर
डमरू-बीन बजाता जोकर।

सिक्का एक चार में बदले
दो को बीस बनाता जोकर।

आओ-आओ सर्कस देखो
यह आवाज लगाता जोकर।
-रमेशराज



।। मूँछें ।।
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तरह-तरह की होती मूँछें
मोटी लम्बी चौड़ी मूँछें।

किसी-किसी की काली मूँछें
और किसी की भूरी मूँछें।

होली पर बच्चों के दिखतीं
रंग-विरंगी नकली मूँछें।

कोई रखता इन्हें तानकर
और किसी की नीची मूँछें।

किसी-किसी के दिख जाती हैं
अब भी हिटलर जैसी मूँछें।

कैसी लगती तब महिलाएं
जब उनके भी होती मूँछें!

कोई मन ही मन मुस्काता
रख तलवार सरीखी मूँछें।
-रमेशराज



।। जोकर ।।
सबको खूब हँसाता जोकर
गर्दभ-स्वर में गाता जोकर।

ताक धिनाधिन  ताता थइया
सबको नाच दिखाता जोकर।

छह फुट की दाढ़ी के ऊपर
लम्बी मूँछ लगाता जोकर।

लुढ़क-लुढ़क कर खूब मंच पर
कलाबाजियाँ खाता जोकर।

खड़िया गेरू से मुँह रँगकर
सूरत अजब बनाता जोकर।

एक साथ में सौ पाजामे
पहन मंच पर आता जोकर।

सब रह जाते हक्के-बक्के
दो फुट तोंद फुलाता जोकर।
-रमेशराज



।। तोंद ।।
ढेरों लड्डू खाती तोंद
पर भूखी रह जाती तोंद।

जब कोई खर्राटे भरता
कत्थक नृत्य दिखाती तोंद।

गुब्बारे जैसी तन जाती
जब पूरी भर जाती तोंद।

लोटपोट हों सभी देखकर
जोकर-सी इठलाती तोंद।
-रमेशराज



।। अप्रिल-फूल मनायें ।।
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करें शरारत लेकिन ढँग से
कोई जिसका बुरा न माने
ठेस न किसी सु-मन को पहुँचे
भूल न हो जाये अन्जाने
कोयल जैसा मधुर  बोलकर
यारो हम सब हँसे-हँसायें
आओ अप्रिल फूल बनायें।

झूठ-मूठ को हम रोते हैं
आओ धरती पर सोते हैं
पानी के चिपकाकर आँसू
थोड़ा-सा दुःखमय होते हैं
देख हमारी रोनी सूरत
अम्मा-दादी दौड़ी आयें
आओ अप्रिल-फूल मनायें।

खाने बैठें जब पापा तो
फौरन सी-सी,सी-सी बोलें
मम्मी भागी-भागी आयें
चीनी का झट डब्बा खोलें
आलू की सब्जी में आओ
थोड़ी-सी अब मिर्च मिलायें
आओ अप्रिल-फूल मनाएँ।
-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630